


वैदिक ज्योतिष में देवगुरु बृहस्पति का विशेष महत्व माना गया है। बृहस्पति को देवताओं के गुरु कहा जाता है, जो ज्ञान, धर्म, नीति और समृद्धि के कारक हैं। सामान्यतः बृहस्पति का गोचर सीधी चाल में होता है, लेकिन 12 वर्षों के बाद ऐसा संयोग बन रहा है जब बृहस्पति वक्री चाल में जाएंगे। यह खगोलीय घटना 2025 की दूसरी छमाही में घटित हो रही है, जिसका प्रभाव समस्त मानव जीवन, समाज व्यवस्था, राजनीति, शिक्षा, धर्म तथा 12 राशियों पर व्यापक रूप से देखा जाएगा।
वक्री बृहस्पति का ज्योतिषीय अर्थ
जब कोई ग्रह वक्री होता है, तो वह पृथ्वी से देखने पर उल्टी दिशा में चलता हुआ प्रतीत होता है। वक्री अवस्था में बृहस्पति की ऊर्जा सीधी नहीं होकर अंतरमुखी हो जाती है। इसका तात्पर्य यह है कि जो भी क्षेत्र बृहस्पति संचालित करता है—ज्ञान, शिक्षा, धर्म, न्याय, नीति, गुरु-शिष्य परंपरा—उन क्षेत्रों में गहराई, पुनरावलोकन और सुधार की प्रक्रिया चलती है।
समाज पर प्रभाव
वक्री बृहस्पति के कारण समाज में धार्मिक और नैतिक मूल्यों पर पुनर्चिंतन की स्थिति बनेगी। शिक्षा नीति, आर्थिक नीतियां, न्याय व्यवस्था में पुराने मुद्दे फिर से चर्चा में आ सकते हैं। कई बार यह देखा गया है कि इस अवधि में गुरु, शिक्षक वर्ग और धार्मिक नेतृत्व से जुड़े मामलों में विवाद या परिवर्तन की स्थिति बनती है।
राजनीति पर प्रभाव
राजनीति में भी नैतिकता और नीति के सवाल मुखर हो सकते हैं। पुराने घोटाले या दबी हुई बातें सामने आ सकती हैं। सरकारों को आर्थिक और शैक्षणिक नीतियों पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।
व्यक्तिगत जीवन पर प्रभाव
वक्री बृहस्पति का प्रभाव व्यक्ति की जन्मपत्रिका में उसके बृहस्पति की स्थिति पर निर्भर करता है। फिर भी सामान्य प्रभाव इस प्रकार रह सकते हैं:
धनु और मीन राशि के स्वामी होने के कारण इन राशियों पर विशेष प्रभाव
शिक्षा, करियर, विवाह, संतान से संबंधित योजनाओं में विलंब या पुनर्विचार की स्थिति बन सकती है।
मेष, सिंह, वृश्चिक राशियों के लिए
आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ सकती है। गुरु संबंधी कार्य, धार्मिक यात्रा के योग बन सकते हैं।
वृषभ, कन्या, तुला, मकर, कुंभ राशियों के लिए
आर्थिक निर्णयों में सावधानी आवश्यक होगी। निवेश या बड़ी खरीदारी टालना बेहतर रहेगा।
विशेष सलाह
धार्मिक कार्यों में मन लगाना चाहिए।
गुरुजनों व विद्वानों से सलाह लेना लाभकारी रहेगा।
जल्दबाजी में आर्थिक निर्णयों से बचें।
पुरानी योजनाओं और संबंधों पर पुनर्विचार करें, किन्तु अंतिम निर्णय वक्री काल समाप्त होने के बाद लें।
12 वर्षों बाद बृहस्पति का वक्री होना एक साधारण घटना नहीं है। यह आत्मचिंतन, समाज और धर्म की गहराई में उतरने का समय है। जहां एक ओर यह स्थिति कई तरह की उलझनों को जन्म दे सकती है, वहीं दूसरी ओर यह गहन सुधार और नए रास्तों की खोज का भी द्वार खोलती है। अतः आवश्यकता है कि हम इस खगोलीय परिवर्तन को समझें और जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन व धैर्य बनाए रखें।